अकबर बादशाह अक्सर अपनी प्रजा की ईमानदारी और उनके प्रेम को लेकर गर्व महसूस करते थे। एक दिन, दरबार में उन्होंने बीरबल से कहा, "बीरबल! हमारी जनता बेहद ईमानदार है और हमें कितना बहुत प्यार करती है।"
बीरबल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "बादशाह सलामत! आपके राज्य में कोई भी पूरी तरह ईमानदार नहीं है, न ही वे आपसे ज्यादा प्यार करते हैं।"
अकबर ने हैरानी से पूछा, "यह तुम क्या कह रहे हो बीरबल?" बीरबल ने उत्तर दिया, "मैं अपनी बात को साबित कर सकता हूं बादशाह सलामत!"
अकबर ने कहा, "ठीक है, तुम हमें साबित करके दिखाओ।" बीरबल ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि बादशाह सलामत एक भोज करने जा रहे हैं और इसके लिए प्रजा से अनुरोध है कि अगले सुबह दिन निकलने से पहले हर आदमी एक-एक लोटा दूध डाल दे। कड़ाहे रखवा दिए गए थे ताकि हर आदमी उसमें दूध डाल सके।
हर आदमी ने सोचा कि जहां इतना दूध इकट्ठा होगा, वहां उसके एक लोटे पानी का क्या पता चलेगा? अत: हर आदमी कड़ाहों में पानी डाल गया। सुबह जब अकबर ने उन कड़ाही को देखा, तो दंग रह गए। उन कड़ाहों में केवल सफेद पानी था। अकबर को वस्तुस्थिति का पता चल गया।
दरबार में अकबर ने बीरबल से पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि लोगों की राय आपस में मिलती क्यों नहीं? सब अलग-अलग क्यों सोचते हैं?”
बीरबल ने कहा, “हमेशा ऐसा नहीं होता, बादशाह सलामत! कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिन पर सभी के विचार समान होते हैं।” इसके बाद दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई।
उस शाम, जब अकबर और बीरबल बाग में टहल रहे थे, बीरबल ने एक नया प्रयोग करने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने अकबर से कहा, “आप शाही फरमान जारी कराएं कि नगर के हर घर से एक लोटा दूध लाकर बाग में स्थित कुएं में डाला जाए। दिन पूर्णमासी का होगा।”
अकबर ने फरमान जारी करवा दिया कि आने वाली पूर्णमासी के दिन हर घर से एक लोटा दूध लाकर शाही बाग के कुएं में डाला जाए।
पूर्णमासी के दिन, बाग के बाहर लोगों की कतार लग गई। सभी के हाथों में भरे हुए पात्र दिखाई दे रहे थे। बादशाह अकबर और बीरबल दूर से यह सब देख रहे थे। जब सभी वहां से चले गए, तो अकबर और बीरबल ने कुएं के अंदर झांका। कुआं पानी से भरा था, दूध का तो कहीं नामोनिशान तक न था।
हैरानी भरी निगाहों से अकबर ने बीरबल से पूछा, “ऐसा क्यों हुआ?” बीरबल हंसते हुए बोले, “यही तो मैं सिद्ध करना चाहता था, हुजूर! सभी ने सोचा कि उनके एक लोटे पानी से किसी को क्या पता चलेगा, और इसलिए सभी ने पानी से भरे बरतन कुएं में डाल दिए।”
बीरबल की इस चतुराई को देखकर अकबर ने उनकी पीठ थपथपाई। बीरबल ने सिद्ध कर दिया था कि कभी-कभी लोग एक जैसा भी सोचते हैं।